Maa-par kavita Maa-rishta vahi soch nai
माँ पर तो बहोत लिखा होगा, पर आज की इस इक्कीसवी सदी मे एक माँ अपनेआप पर लिखती है …!!! Maa-par kavita माँ – रिश्ता वही सोच नई…! इस माँ पर लिखी कविता मे माँ का बच्चों के प्रति नया रिश्ता, नई सोच लिखी है, पढ़िएगा दोस्तों ….!!
Maa-par kavita
माँ – रिश्ता वही सोच नई…!Maa-rishta vahi soch nai
जीस जान को हम अपने र्स्वाथ, प्यार, भविष्य और बूढापे की लकडी के लिए इस संसार मे लाते है, उस संतानकी आँखोमे मेरी वजहसे एक बूँद भी आँसूका आए तो, धिक्कार है मेरे मातृत्व पर........(१) जिस संतान को संसार मे लाने का हक हमे मिलता है, उस संतान को संसार की सारी खूशियाँ देने का, हर संभव प्रयास मै ना करू तो..., धिक्कार है मेरे मातृत्व पर........(२) जीस संतान को हम, जीस अगली पिढी मे चलना सीखाते है, हमारे बाद भी उसे जीना सीखाते है, उस नई सोच को मै ना समझ सकू तो..., धिक्कार है मेरे मातृत्व पर.......(३) समयचक्रका घूमता पैया, कभी रूकता नही, समय, परिस्थितीयाँ, वातावरण बदले, पर अगर हमारी सोच ना बदले तो...., धिक्कार है मेरे मातृत्व पर.......(४) जैसा समय आता है, उस हिसाब से सांचा बदलता है, उस सांचे मे हमे अपनी संतान को किस तरह ढालना है, वह, मै ना समझ सकू तो...., धिक्कार है मेरे मातृत्व पर ..... (५) र्सिफ जन्म देने से माता-पिता का दायित्व पूरा नही होता, वर्तमान काल और परिस्थिती मे..., अपनी संतान को सुखी और आर्दश जीवन प्रदान करना, यह भी हमारा दायित्व होता है ..... (६) माँ लेने का नही, देने का नाम है ....! माँ पाने का नही, ममता लूटाने का नाम है ...! माँ को क्या अर्पण करे, माँ ही सर्मपण का नाम है ...! इसिलीए तीनो जहान मे, माँ का अस्तित्व महान है ..... (७) - Meena Jain
Maa-par kavita , माँ – रिश्ता वही सोच नई…! Maa-rishta vahi soch nai इस कविता को पढ़ने के लिए कवयित्री meena jain आपका तहेदील से धन्यवाद करती है ! अपने बच्चों की खुशी और उनकी जिम्मेदारी से बढ़कर माँ का कोई अस्तित्व नहीं होता एसा ही मुजे लगता है, Thanks Friends